दस्युरानी गुड़िया एवं अन्य कहानियाँ (Dasyurānī Guḍiyā Evaṃ Anya Kahāniyān)

दस्युरानी गुड़िया एवं अन्य कहानियाँ (Dasyurānī Guḍiyā Evaṃ Anya Kahāniyān)
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Artikel-Nr:
9789355944658
Veröffentl:
2005
Seiten:
216
Autor:
अवधनारायण श्रीवास्तवा (Avadhanārāyaṇa Srīvāstavā)
eBook Typ:
EPUB
Kopierschutz:
Adobe DRM [Hard-DRM]
Sprache:
Englisch
Beschreibung:

यह किताब मर्मस्पर्शी कहानियों और खट्टे-मीठे संस्मरणों का गुलदस्ता है। विख्यात लेखक के पास न केवल कहने को बहुत कुछ है अपितु कहने का सलीका भी है। “दस्युरानी गुड़िया” जो कि पुस्तक का टाईटिल भी है चंबल के उबड़-खाबड़ बीहड़ों में एक ऐसे दस्यु-चरित्र को पुनर्जीवित् कर देती है जो एक प्रसिद्ध अफसर को धर्म-भाई मान कर आत्म-समर्पण करना चाहती है लेकिन नियति उसे डाकुओं के गृहयुद्ध में घसीट ले जाती है। गुड़िया का क्या हुआ और पुलिस अफसर पर क्या बीती? उस मुखबिर का क्या हुआ जिसने अपनी ‘राम नाम सत्य’ भी खुद ही कर ली थी?इस गुलदस्ते में स्त्री-पुरुष संबंधों के विविध आयामों को पर्त-दर-पर्त कुरेदती रूमानी त्रासदी है जिनके चरित्र जीवंत होकर पाठक से कहते हैं- “हम तो कहानी कह कर गुम-सुम खड़े रहे; सब अपने-अपने चाहने वालों में खो गये”। उस रात देहरादून एक्सप्रेस में क्या हुआ जब वह विमला जी से 18 वर्ष बाद अचानक मिला...दास बाबू को स्वास्थ्य रक्षा हेतु नौ कैरेट का मूंगा चाँदी की अंगूठी में पहनना लाभप्रद बताया गया। नियति का खेल कि वह अंगूठी उनकी सड़ी-गली लाश में मिली। क्या दास बाबू की त्रासद मृत्यु स्वयं ईश्वर के अस्तित्व पर उंगली नहीं उठाती है।भोपाल के अद्धे भाई के रोग का ईलाज और उत्तर पूर्व की समस्याओं के समाधान में क्या समानता है?“जैकी मर गई...हे राम! मैंने जैकी को मर जाने दिया। शरीर से अलसेशियन, आँखों से लेबरेडार...थोड़ी सी डोबरमैन...पशु के माध्यम से मानवीय संवेदनाओं का चरमोत्कर्ष।”आई. पी. एस प्रोबेश्नरो को प्रशिक्षण देते छिंदवाडा के बड़े बाबू जिन्हें जब दस रुपये की रिश्वत देने का प्रयास किया गया तो वह यह सोचकर गश खा कर गिर पड़े कि हे भगवान्! क्या मेरा चरित्र इतना गिर गया है जो किसी की हिम्मत रिश्वत देने की हुई?प्रस्तुत है पूर्व राज्यपाल अवध नारायण श्रीवास्तवा के सहृदय चिंतन और सशक्त कलम से जन्मी नौ अत्यंत पठनीय कहानियां जो पाठक को जिन्दगी की गहराईयों और ऊंचाईयों से रूबरू कराती है...
यह किताब मर्मस्पर्शी कहानियों और खट्टे-मीठे संस्मरणों का गुलदस्ता है। विख्यात लेखक के पास न केवल कहने को बहुत कुछ है अपितु कहने का सलीका भी है। “दस्युरानी गुड़िया” जो कि पुस्तक का टाईटिल भी है चंबल के उबड़-खाबड़ बीहड़ों में एक ऐसे दस्यु-चरित्र को पुनर्जीवित् कर देती है जो एक प्रसिद्ध अफसर को धर्म-भाई मान कर आत्म-समर्पण करना चाहती है लेकिन नियति उसे डाकुओं के गृहयुद्ध में घसीट ले जाती है। गुड़िया का क्या हुआ और पुलिस अफसर पर क्या बीती? उस मुखबिर का क्या हुआ जिसने अपनी ‘राम नाम सत्य’ भी खुद ही कर ली थी?इस गुलदस्ते में स्त्री-पुरुष संबंधों के विविध आयामों को पर्त-दर-पर्त कुरेदती रूमानी त्रासदी है जिनके चरित्र जीवंत होकर पाठक से कहते हैं- “हम तो कहानी कह कर गुम-सुम खड़े रहे; सब अपने-अपने चाहने वालों में खो गये”। उस रात देहरादून एक्सप्रेस में क्या हुआ जब वह विमला जी से 18 वर्ष बाद अचानक मिला...दास बाबू को स्वास्थ्य रक्षा हेतु नौ कैरेट का मूंगा चाँदी की अंगूठी में पहनना लाभप्रद बताया गया। नियति का खेल कि वह अंगूठी उनकी सड़ी-गली लाश में मिली। क्या दास बाबू की त्रासद मृत्यु स्वयं ईश्वर के अस्तित्व पर उंगली नहीं उठाती है।भोपाल के अद्धे भाई के रोग का ईलाज और उत्तर पूर्व की समस्याओं के समाधान में क्या समानता है?“जैकी मर गई...हे राम! मैंने जैकी को मर जाने दिया। शरीर से अलसेशियन, आँखों से लेबरेडार...थोड़ी सी डोबरमैन...पशु के माध्यम से मानवीय संवेदनाओं का चरमोत्कर्ष।”आई. पी. एस प्रोबेश्नरो को प्रशिक्षण देते छिंदवाडा के बड़े बाबू जिन्हें जब दस रुपये की रिश्वत देने का प्रयास किया गया तो वह यह सोचकर गश खा कर गिर पड़े कि हे भगवान्! क्या मेरा चरित्र इतना गिर गया है जो किसी की हिम्मत रिश्वत देने की हुई?प्रस्तुत है पूर्व राज्यपाल अवध नारायण श्रीवास्तवा के सहृदय चिंतन और सशक्त कलम से जन्मी नौ अत्यंत पठनीय कहानियां जो पाठक को जिन्दगी की गहराईयों और ऊंचाईयों से रूबरू कराती है...

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